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त्रिवेणी संगम की स्वच्छता और निर्मलता से अभिभूत हुईं नजर आईं वॉटर विमेन शिप्रा पाठक

स्वच्छ महाकुम्भ के लिए किए गए प्रयासों पर सीएम योगी का जताया आभार, कहा- योगी के सुशासन की पूरे देश में चर्चा

महाकुम्भ में जल और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक थाली, एक थैला अभियान चला रहीं शिप्रा

महाकुम्भ में अभियान के तहत अब तक लाखों थैला और थालियों का किया जा चुका वितरण

जल संरक्षण के प्रति जागरूकता के लिए अब तक देश भर में की 13,000 किलोमीटर की पदयात्राएं

संस्था पंचतत्व से जुड़े 15 लाख लोग, नदियों के किनारे लगाए 25 लाख पौधे

महाकुम्भ नगर। वॉटर विमेन ऑफ इंडिया के नाम से प्रख्यात शिप्रा पाठक महाकुम्भ में त्रिवेणी संगम की स्वच्छता और अविरलता देखकर अभिभूत नजर आ रही हैं। उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आभार जताया है। महाकुम्भ में जल और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक थैला, एक थाली अभियान में जुटीं शिप्रा ने कहा, “संगम समेत पूरे महाकुम्भ में स्वच्छता का जो दृश्य दिख रहा है वो अद्भुत है। यह सुंदर व्यवस्था एक ऐसे व्यक्ति ने की है जो मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ एक साधक हैं, योगी हैं, संन्यासी है। कुम्भ उनके हृदय के बहुत निकट है। इसलिए कुम्भ की उनसे बेहतर व्यवस्था कोई और नहीं कर सकता।” अभियान के तहत अब तक विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से महाकुम्भ में लाखों थैले और थालियों का वितरण किया जा चुका है।

सीएम योगी के सुशासन को पूरे देश में मिल रही पहचान
सीएम योगी को शिप्रा ने सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री करार देते हुए कहा कि पूरे देश में उनके सुशासन की चर्चा हो रही है। उन्होंने कहा, “कुम्भ से अलग भी उदाहरण दूं तो पिछले वर्ष नवंबर में अयोध्या से रामेश्वरम पैदल गई थी। जब हमने कर्नाटक में लोगों को बताया कि मैं अयोध्या से, राम के घर से आई हूं तो उनकी प्रतिक्रिया थी कि योगी वाला उत्तर प्रदेश। अगर कर्नाटक के एक छोटे से गांव में भारत के सबसे बड़े प्रदेश की पहचान योगी जी के नाम से हो रही है तो इसका मतलब है कि महाराज जी की सेवा, संकल्प और सिद्धांत को कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक मान्यता मिल रही है।”

संस्कृति विलुप्त हुई तो दूसरा महाकुम्भ नदी किनारे नहीं हो पाएगा
वॉटर विमेन शिप्रा पाठक जल एवं पर्यावरण संरक्षण को लेकर अब तक 13,000 किलोमीटर की पदयात्राएं कर चुकी हैं। उनकी संस्था पंचतत्व से 15 लाख लोग जुड़े हैं, जिनके सहयोग से नदियों के किनारे 25 लाख पौधे लगाए गए हैं। यहां महाकुम्भ में भी वह स्वच्छता की अलख जगाने के लिए एक थैला, एक थाली अभियान में सक्रिय भूमिक निभा रही हैं। उनका कहना है कि कुम्भ को स्वच्छ बनाने के लिए हमने पहले ही अखाड़ों में जाकर थैला, थालियां, गिलास, चम्मच बांट दिए। किसी श्रद्धालु के हाथ में पन्नी दिखी तो उसको भी थैला दे दिया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी संस्कृतियों को जीवित रखते हुए नदी को बचाना है। नदियों को कमर्शियलाइज करके, मशीन डालकर साफ कर सकते हो, लेकिन संस्कृति यदि एक बार विलुप्त हो गई तो दूसरा महाकुम्भ नदी किनारे नहीं हो पाएगा।

निर्मल, अविरल जल के लिए एक वर्ष से कर रहीं प्रयास
अपना कारोबार और नौकरी छोड़कर नदियों और जंगलों को बचाने का संकल्प लेने वाली शिप्रा ने महाकुम्भ के महात्म्य को लेकर कहा कि यह साधारण उत्सव या अवसर नहीं है। संगम त्रिवेणी पर हर वर्ग, हर तबके, हर विचार के लोग डुबकी लगाते हैं तो वहां का स्पंदन कुछ अलग ही होता है। यहां पर डुबकी लगाना ही मेरा प्रकल्प नहीं है। मेरे पहले और मेरे बाद जो लोग भी यहां डुबकी लगाएं, उन्हें निर्मल, अविरल जल के दर्शन हों इसके लिए हम एक साल से कार्यरत हैं। पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के द्वारा हमने 100 संस्थाओं को एकजुट किया है जो हमारा सहयोग कर रही हैं।

जहां नदियां स्वच्छ, वहां विकास
वॉटर विमेन बनने की अपनी कहानी साझा करते हुए वह कहती हैं कि बचपन से ही जल के प्रति मेरा बहुत प्रेम था। माता-पिता ने नाम भी शिप्रा रखा जो एक नदी का नाम है। कंपनी के काम से जब विदेश जाती थी तो देखती थी कि वहां की नदियां कितनी स्वच्छ हैं। वहां तो नदियों को देवी नहीं माना जाता। हमारी नदियां ऐसी क्यों नहीं है। नर्मदा की परिक्रमा ने मेरा मन बदला। मैंने देखा मां नर्मदा जहां-जहां दूषित है, वहां लोगों का अर्थ भी बिगड़ा हुआ है, स्वास्थ्य भी बिगड़ा हुआ है और जहां वह अविरल बह रही है वहां विकास दिखाई देता है। यहीं से वैराग्य हुआ। शिप्रा की यात्रा की, गोमती की यात्रा की, फिर अयोध्या से रामेश्वरम तक की यात्रा की। हमारा उद्देश्य नए भारत की परिकल्पना नहीं, बल्कि प्राचीन भारत को ही जीवित रखना है। हमें आने वाली पीढ़ी को अपनी संस्कृति से अवगत कराना होगा। त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने से सिर्फ मोक्ष नहीं मिलता है, बल्कि शरीर भी स्वस्थ होता है। एक स्वस्थ शरीर को ही मोक्ष मिल पाएगा।

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